गुरुवार, 4 अक्तूबर 2012

भिन्न


पिछले हफ्ते यू-ट्यूब पर एक कवि-सम्मेलन मे कवियत्रि अनामिका जैन 'अम्बर' को सुना. उनकी कुछ और रचनायें पढ़ने के लिए हमेशा की तरह गूगल का रुख़ किया. दो-चार अन्य रचनायें पढ़ीं. एक रचना ने मेरा ध्यान आकर्षित किया. रचना का नाम 'भिन्न'. नीचे वही रचना आपके लिए...पढ़े..पर दीमाग पर ज़ोर न दें. कुछ चीज़ें शायद कभी नहीं बदलती. यह बात मानव समाज की मानसिकता पर भी लागू होती है...


मंगलवार, 15 नवंबर 2011

चिंगारी तो है...!!






"न कॉंग्रेस, ना भाजपा,जो अच्च्छा काम करेगा, साब मैं उसके साथ हूँ| साब मैं  जात से मुसलमान हूँ..पर मैं हिंदू मुस्लिम नही मानता| ऊपर वाले ने बस दो ही जात बनाई है, मर्द और औरत..बांकी ना यहाँ ना कोई साधु, ना कोई मुल्ला| साले सब राजनीति करते हैं| भाय्या भागाओ आंदोलन चलते हैं, अपना पेट पालने के लिए...इन्हे शर्म नहीं आती, बस राजनीति आती है साब|"
ये शब्द हैं, मेरे साथ सफ़र कर रहे एक आम आदमी के| और हम कहते हैं, कि जनता भोली है, बेवकूफ़ है| कहना ग़लत नही होगा की, चिंगारी भी है.. और आशा भी..बस नीयत की दरकार है.........नि:संदेह परिवर्तन दूर नहीं|

शुक्रवार, 11 नवंबर 2011

अंधेरा और सत्य


जिस प्रकार जीवन का एकमात्र सच मृत्यु है, ठीक उसी प्रकार संसार का एकमात्र सत्य, अंधेरा (तम) है| हमने हमेशा यही सुना, यही जाना कि यह दुनिया प्रकाश की है| परंतु, यह तथ्य निराधार है|  प्रकाश के अभाव से अंधेरा होता है, ये सभी जानते हैं; परंतु अंधेरे का अभाव? सोच से भी परे है| प्रकाश को तो फिर भी स्त्रोत की दरकार होती है, पर अंधेरे को? नहीं| माना अंधेरा कमज़ोर होता है और प्रकाश की एक छोटी सी किरण भी अंधेरे को चीरने के लिए पर्याप्त है| फिर भी यह संसार अंधेरे का है, इसमें दो-राय रखना निराधार प्रतीत होता है|
 अंधेरे के इस गुणगान से मेरा यह तत्पर्य बुराइयों का प्रचार करना कदापि नही है, क्यूंकी अंधेरे का मतलब बुराई नहीं, अस्त्य नहीं| प्राचीन काल से ही बुद्धिजीवी अंधेरे को असत्य और बुराइयों का पर्याय मानते आए हैं, परंतु मेरी नज़र मे यह ग़लत और भ्रमित करने वाली बात है| ऐसा इसलिए क्यूंकी मेरी राय में अंधेरा एक सत्य है, शायद प्रकाश से भी बड़ा|