गुरुवार, 4 अक्तूबर 2012

भिन्न


पिछले हफ्ते यू-ट्यूब पर एक कवि-सम्मेलन मे कवियत्रि अनामिका जैन 'अम्बर' को सुना. उनकी कुछ और रचनायें पढ़ने के लिए हमेशा की तरह गूगल का रुख़ किया. दो-चार अन्य रचनायें पढ़ीं. एक रचना ने मेरा ध्यान आकर्षित किया. रचना का नाम 'भिन्न'. नीचे वही रचना आपके लिए...पढ़े..पर दीमाग पर ज़ोर न दें. कुछ चीज़ें शायद कभी नहीं बदलती. यह बात मानव समाज की मानसिकता पर भी लागू होती है...


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें